मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार की जड़ें हिलाने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो सकते हैं। पार्टी उन्हें राज्यसभा भेज सकती है। चर्चा तो यह भी है कि राज्यसभा चुनाव के नतीजे आने के फौरन बाद उन्हें मोदी सरकार में मंत्री भी बनाया जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ज्योतिरादित्य मंगलवार सुबह करीब 10:45 बजे अपनी कार खुद ड्राइव करते हुए गुजरात भवन पहुंचे। यहां से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उन्हें अपने साथ 7 लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास लेकर गए, जहां शाह की मौजूदगी में सिंधिया की प्रधानमंत्री से करीब घंटेभर बातचीत हुई। फिर शाह की ही कार में सिंधिया गुजरात भवन लौटे। इस मुलाकात के बाद दोपहर 12.10 बजे उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफे की चिट्ठी ट्वीट कर दी, जो सोमवार, यानी 9 मार्च को ही लिख ली गई थी।
विधानसभा चुनाव से राज्यसभा चुनाव तक सिंधिया की नाराजगी
सीएम पद की दौड़ में पिछड़े : विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने सिंधिया का प्रचार के मुख्य चेहरे के रूप में इस्तेमाल किया था, लेकिन सीएम पद की दौड़ में वे पिछड़ गए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए भी उनका नाम आगे रहा, लेकिन पद नहीं मिला।
डिप्टी सीएम भी नहीं बन सके : अटकलें थीं कि ज्योतिरादित्य डिप्टी सीएम बनाए जा सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य को गुना लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए भी उनकी दावेदारी कमजोर हो गई।
पसंद का बंगला नकुल को मिला : सिंधिया ने चार इमली में बी-17 बंगला मांगा, लेकिन वह कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को दे दिया गया।
ट्विटर हैंडल से कांग्रेस का नाम हटाया : करीब 4 महीने पहले 25 नवंबर 2019 को ज्योतिरादित्य ने ट्विटर पर अपनी प्रोफाइल से कांग्रेस का नाम हटा दिया। केवल जनसेवक और क्रिकेट प्रेमी लिखा।
सड़क पर उतरने की चेतावनी दी : 14 फरवरी को टीकमगढ़ में अतिथि विद्वानों की मांगों पर ज्योतिरादित्य ने कहा कि यदि वचन पत्र की मांग पूरी नहीं हुई तो वे सड़क पर उतरेंगे। इस पर कमलनाथ ने जवाब दिया कि ऐसा है तो उतर जाएं। इसी के बाद दोनों के बीच तल्खी बढ़ने लगी।
राज्यसभा चुनाव की वजह से बढ़ी दूरियां : मध्यप्रदेश में जब कांग्रेस स्थिर थी, तब प्रदेश की 3 राज्यसभा सीटों में से 2 पर उसके उम्मीदवार जीतना तय थे। दिग्विजय की उम्मीदवारी पक्की थी। दूसरा नाम ज्योतिरादित्य का सामने आया। बताया जा रहा है कि उनके नाम पर कमलनाथ अड़ंगे लगा रहे थे। इसी से ज्योतिरादित्य नाराज थे।
बगावत : 9 मार्च को जब प्रदेश के हालात पर चर्चा के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचे थे, तभी 6 मंत्रियों समेत सिंधिया गुट के 17 विधायक बेंगलुरु चले गए थे। इससे साफ हो गया कि सिंधिया अपनी राहें अलग करने जा रहे हैं।
हार्वर्ड और स्टैनफोर्ड से पढ़े हैं ज्योतिरादित्य
1 जनवरी 1971 को जन्मे सिंधिया ने 1993 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स की डिग्री ली। 2001 में उन्होंने स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए की डिग्री ली। ज्योतिरादित्य की 12 दिसंबर 1994 को बड़ौदा के गायकवाड़ राजघराने की प्रियदर्शिनी राजे से शादी हुई। ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया का 30 सितंबर 2001 को विमान हादसे में निधन हो गया था। इसी साल ज्योतिरादित्य कांग्रेस में शामिल हुए। वे फरवरी 2002 में गुना सीट पर उपचुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में इसी सीट से वे दोबारा चुने गए। 28 अक्टूबर 2012 से 25 मई 2014 तक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रहे।
माधवराव बेटे ज्योतिरादित्य को डबल बैरल की बंदूक कहते थे
माधवराव सिंधिया अपने बेटे ज्योतिरादित्य को डबल बैरल की ऐसी बंदूक कहते थे, जिसे मालूम है कि पेशेवर अंदाज में उसे कैसे चलाया जाता है। ज्योतिरादित्य को महाराष्ट्रीयन दाल पसंद है। कार में वे एसी चलाना पसंद नहीं करते। 2013 में जब भाजपा ने सिंधिया को महाराज कहकर निजी हमले करना शुरू किए तो उन्होंने कहा था, ‘‘मैं 21वीं सदी के भारत का एक नौजवान हूं... व्यक्ति अतीत के आधार पर आगे नहीं बढ़ सकता। भाजपा का काम आलोचना करना है। मुझे आश्चर्य है कि वे उसी परिवार की आलोचना कर रहे हैं, जिस परिवार की मेरी दादी (विजयाराजे सिंधिया) उनकी पार्टी के संस्थापकों में से थीं। जब मेरी बुआ ( वसुंधरा राजे) को राजस्थान का सीएम बनाया तो ये शब्द याद नहीं आए, जो अब आ रहे हैं।’’